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Top University for MBA Online USA with List

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स्नेहिल प्रभात वंदन सभी को। ईश्वर कृपा बनाये रखें।जबसे जीवन की हक़ीक़त मिल गई

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स्नेहिल प्रभात वंदन सभी को।  ईश्वर कृपा बनाये रखें। जबसे जीवन की हक़ीक़त मिल गई  तब से सब को ही नसीहत मिल गई  साथ  छूटा  दोस्त  का  परिवार  का  क्या हुआ ग़र फिर भी दौलत मिल गई  चैन  छूटा  और  दिल  का  भी  सुकूं  ऐसी भी क्या तुमको शुहरत मिल गई  तोड़  कर बैठे हो सबका दिल कहीं  ख़ाक  डालो  जो  हुकूमत मिल गई  जाने   कैसे  आदमी  जाहिल  हुआ  कब  उसे कैसे यह सुहबत मिल गई  दूर  से   दिखता  सुखी   हो आदमी  पर  यकीं  मानो  मुसीबत मिल गई  वह   सुखी   इंसान   है   संसार   में  दूसरों  से  जिसको इज्जत मिल गई  डॉ रश्मि दुबे

में ओर मेरे पति

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एक बार जरूर पढियेगा  [ 1 ] पति : बिस्तर पर सोने को केवल चार लोगों की जगह है। पत्नी : कोई बात नहीं मुझे तो वैसे भी नया गद्दा चुभता है मैं ज़मीन पर सो लूँगी, आप और बच्चे बिस्तर पर सोया कीजिये। [ 2 ] पति : इस बार दीवाली पर बोनस नहीं मिलेगा। पूजा तो हो जाएगी मगर नए कपड़े और खिलौने नहीं ला पाऊँगा बच्चों के लिए। पत्नी : आप चिंता मत करिए। मैंने कुछ पैसे बचा कर रखे थे आपके पिछले महीनों के बोनस से। आप थान के कपड़े ले आइयेगा, मैं बच्चों के नए कपड़े सिल दूँगी और खिलौने भी आ जाएंगे। [ 3 ] पति : सुनो, मेरी सैलरी में इजाफ़ा हुआ है। इस बार अपने लिए एक दो सलवार-सूट सिलवा लेना। पत्नी : मेरे पास पहनने के कपड़ों की कमी नहीं है। आपने अपने जूतों की हालत देखी है? इस बार तो आपके लिए रेड चीफ के शूज़ खरीदने हैं। और बड़ी बेटी को फैंसी ड्रेस कम्पटीशन में भाग लेना था। उसके लिए भी एक प्यारी सी ड्रेस। [ 4 ] बेटा : माँ, खाने में तो मटर-पनीर बना था ना। तुम ये कल रात की बासी सब्जी क्यों खा रही हो?" माता : अरे, मुझे मटर पनीर नहीं पसन्द बेटा। तेरे पापा और छुटकी को पसन्द है। उनको सुबह टिफ़िन में देने के लिए बचा द...

अश्कों से बात हो गई

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अश्कों से बात हो गई   रूठने की आदत तो कब की छूट गई ख़ुद से ख़ुद की बेरूखी,जब से हो गई दर्द भी खिल उठे अब, हंसने लगी आंखें लफ़्ज़ हुए खामोश,अश्कों से बात हो गई    कल और आज के फासले को देखती रही    सुस्त पड़े कदमों से बेतहाशा दौड़ती रही   दर्द की मुकम्मल एक किताब बन गई हूं   शब्दों की मोती एक- एक मैं बिखेरती रही।। पूनम झा

कर्म क्यों तेरा है ऐसा धर्म क्यों तेरा है ऐसा

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कर्म  क्यों  तेरा है  ऐसा  धर्म  क्यों  तेरा  है  ऐसा  सदा तू रक्त का पियासा रहा जीवन भरा कुहासा  जरा छाती को कर चौड़ा  हृदय के भी  घोड़े  दौड़ा  आज ये  जहान  है  तेरा  निराशा  ने  तुझको  घेरा  तोड़ना तेरा मकसद क्यों  जोड़ना फितरत हो ना क्यों  जरा तू मानुष तो बन जा  सभी के हृद में जगह पा  लौट आ इस  दुनिया में तू  छोड़ दे उस दुनिया को तू  यहां   है  सरस  प्रेम  धारा  बनेगा  तू   सबका  प्यारा  सुधर  जाएगी करनी तेरी  मिलेंगीं  खुशियां  बहुतेरी  चलो मिल साथी चलते हैं  कदम मिलकर हम रखते हैं 

बेहतरीन हिन्दी शायरी||Hindi shayri

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बेहतरीन हिन्दी शायरी तमाम शिकायत थी हमें ख़ुद की ख़ुद से... आज आईनें में सबकुछ इत्मिनान से कह दिया...!! कुछ सही तो कुछ ग़लत होते होंगे... ज़िन्दा चेहरों में भी लाश होते होंगे... दुनियाँ अजीब लोगों का घर है लेकिन हर ज़िस्म में अच्छे लोग होते होंगे...!! कहाँ ख़बर थी की क्या उसकी कहानीं होगी... हमनें समझा था कि सबसे अलग हमारी ही रवानीं होगी...!! बड़ी ज़िद किया करते हैं वो कभी कभी... हमें भी उन्हें चिढ़ानें में मज़ा आता है लेक़िन...!! अंजान इतनीं हो गई है मेरी शकल मुझसे... आईनें में देखता हूँ तो सोचना पड़ता है...!! मैं नादानी की हर हद पार कर चुका है... ऐसा पहले तो मैं कभी था ही नहीं...!! इक अकेली तस्वीर है मेरे कमरे में... देखता हूँ तो वही चेहरा याद करता हूँ...!! हुकूमतें चाहती हैं कि हम गँवार रहें... जीतना अगली बार भी है चुनाव का खेला...!! समझ बढानें की ज़ुरूरत है अब ज़मानें को... क़िताबें तो हमेशा रद्दी के भाव मिला करती थी...!! यूँ ही पत्थर को तरह खड़े रहते तो कमज़ोर समझता तुम को... तुम तो रो पड़े...कहाँ के हो... बड़े मज़बूत दिखाई पड़ते हो...!! क़िस्मत अच्छी चीज़ है... हमको तुमसे उसी नें रूबरू कराय...

खिल उठते मेरे नयन ए हवा तू ही पता बता दे

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खिल उठते मेरे नयन   ए हवा तू ही पता बता दे पूछूं तुमसे ही उनका हाल कैसे मुक्त हो पाऊं मैं  यादों ने बुरा किया है हाल पल भर के लिए वो आ जाते  खिल उठते मेरे नयन  मिलने की कसमें खाई थी  वो लगता है एक सपन कितना मुश्किल रस्ता है यह बसे वो सात समुंदर पार मैं बैठ गई रस्ते में थककर  अब कैसे करूं समुंदर पार वो आएंगे हर हाल में आज पर्वत नदिया लांघ घनी धूप या तपती धरा हो आएंगे, चलकर नंगे पांव मैं आंख बिछाए बैठी हूं लिए पिया मिलन की आस दिल के दरवाजे पर आकर वो दस्तक देंगे आज।।

जब भी हमारी हुई मुलाकात उनसे दिल ने किए कई मशवरात उनसे

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जब भी हमारी जब भी हमारी हुई मुलाकात उनसे दिल ने किए कई   मशवरात उनसे  वो भी खामोश,रहे हम भी खामोश रूह ने जैसे कर ली हर  बात उनसे  ख्वाब तो आने  को बेताब रहता है आंखों में  निंदिया मगर आती नहीं  रोते हैं रातों को सबसे छुप छुपकर  मिलने की तमन्ना  नज़र जाती नहीं  शाम जब होती है रुखसत फ़लक से  और सजधज कर  तब रात आती है  होले से उतरता है धरती पे चंदा मेरा तब चांदनी मुझको खूब नहलाती है ख़्वाबों के दरीचों पर लगता है बिस्तर  धड़कनों के गुलों से सज जाते हैं मेले  बन जाते हैं कभी इस बारात में दूल्हा और कभी  दुल्हन,, अजी हम अकेले।।

हवा के संग-संग थोड़ा मन को भी बहने दो

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हवा के संग संग हवा के  संग- संग  थोड़ा, मन  को भी  बहने  दो फिज़ा  में  रौनक है कितनी, दिल को  बहलने दो  जमीं   के  ज़र्रे  ज़र्रे  को,  हो  जाने  दो  गुलज़ार   अपने  प्रिय  की याद में, थोड़ा आहें  तो भरने दो दुनिया में एक सा कुछ नहीं, विविधताएं  हैं फैली कहीं  वृक्ष  हैं  हरे  भरे, कहीं   बंजर  भूमि भी  है प्रकृति खुद  की न  बदलो, यह  अद्भुत  सौगात है कहीं निश्चल प्रेम की बारिश,कहीं कटु वचन भी है बिना  लक्ष्य  का  जीवन तो, बेमतलब का होता है आसान नहीं सफर ये, लड़ना बाधाओं से पड़ता है अंधेरा पसरा हर कदम पर, दीप जलाना पड़ता है अपनी  कश्ती का  मांझी, बनना  खुद हीं पड़ता है।।

खामोशियों का शोर खामोशियां अब शोर करने लगी है

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खामोशियों का शोर खामोशियां अब शोर करने लगी है दरवाजे पे खड़ी गौर करने लगी है हवा का झोंका छूकर वापस चला जाता यादों की क्यूं इस तरह होर लगने लगी है वक्त नहीं ठहरता पल भर भी   आकर खड़ा रहता दिल की दहलीज पर और दिल कहता है मायूस होकर  कि शून्य में भी मैं शून्य न हुआ  ना होकर भी गुम न हुआ  जरा सोच मेरी बेचैनी को  न हकीकत न ख्वाब कुछ न हुआ  वक्त कुछ और लगेगा  खुद को बुलंद करने में  मंजिल की फिक्र नहीं अब  आराम मिलेगा सिर्फ सफर करने में।।

जिंदगी कितनी इतराती है

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ज़िंदगी कितनी इतराती है  हमारी जिंदगी भी अजीब है  कभी खुशियों से रहती इतराती   कभी बच्चों की भांति तुरंत रूठ जाती तो कभी बेफिक्र होकर, ठहाके लगाती कभी प्यार करती है बेशुमार  कभी देती है नफरत की मार  पल-पल बदलती, परेशान भी करती  यह दर्द देकर कभी माने न हार कल तो आई थी आशा का दीपक जलाए  आज तेज हवा का झोंका है क्यूं कभी बादल बन कर जमीन पर बरसी  कभी समुद्र से ज्यादा गहराई क्यूं लगती कभी वह फूलों सी नाजुक  कभी पत्थर से ज्यादा सख्त है क्यूं ऐसी ही है जिंदगी, ख्याल भी रखती और चोटें  देती वक्त -बे-वक्त क्यूं।।

यह अदायगी तेरी तेरे नखरे और यह नाराजगी तेरी

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यह अदायगी तेरी तेरे नखरे और यह नाराजगी तेरी  नजर फेरने की यह अदायगी तेरी  ख्वाब में आकर चुपके से निकल जाना  नहीं रही वो पहली सी दीवानगी तेरी   फूलों और चंदन सी खुशबू थी तेरी  क्यों बदलती जा रही है मंजिल तेरी  आखिर क्या हुआ कुछ तो बताओ  नहीं भाती है मुझको ये खामोशी तेरी अब मान भी जाओ उतर आओ ज़मीं पे  भला कौन बैठा रहता यूं रूठकर जमीं से  हमने तो वफा ही निभाया है आज तक  फिर तेरी नजरें क्यूं टिकी रहती यूं सितारों पे।।

जिंदगी सब ने यूं गुजारी है चंद दिन की लगी उधारी है

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स्नेहिल प्रभात वंदन सभी को। ईश्वर कृपा बनाये रखें। जिंदगी  सब  ने यूं  गुजारी है  चंद  दिन  की  लगे उधारी है  ये  कहानी नहीं किताबों  की  आज मेरी तो कल तुम्हारी है  हम हुआ करते काठ की पुतली  कोई  बैठा  कहीं  मदारी  है  ये ग़ुमां हर किसी को रहता है  वक्त  के  संग उसकी यारी है  साथ जाता नहीं किसी के कुछ  जंग  ता  उम्र  ही  ये जारी है  सांस  होती  भले  हमारी पर  बैठा  जाने  कहां  शिकारी है  चाल  सीधी नहीं  रही इसकी  ये  तो  सबसे बड़ी जुआरी है

गुम कभी ना हो जाना

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गुम कभी ना हो जाना  वक्त को,, पल पल पलटते,कभी तो देखा होगा दिल की महफिल में  उसे मायूस  भी देखा होगा दिल  में  छुपा  रखा  होगा  प्रियतम  की  तस्वीर   तस्वीर से सूनी रातों में  करते गूफ्तगू देखा होगा बगावत कर के सांसों से कोई कैसे जी रहा होगा  खुशियों  के पल  नसीब हो  दुआ कर  रहा होगा दिल के भड़कते शोलों को कोई क्यूं  हवा देता है     काश कोई समझ पाता दिल कैसे जल रहा होगा जिंदगी  की  इस भीड़ में  गुम कभी  न हो जाना  कभी हम  कदम  से अपने, तुम  दूर न  हो जाना डरना  नहीं  तूफानों  से, खुद  बन  जाना पतवार  प्यार दिल में  रखना, बुत पत्थर  का  न हो जाना।।

क्यों इतनी जल्दी थक चुके हो

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क्यों इतनी जल्दी क्यों इतनी जल्दी थक चुके हो मैली चादर धोते-धोते तन चमका मन न चमका रह गई चादर ज्यों का त्यूं जाग रे बंदे सुन ले मन की  मत बुन सपने सोते-सोते समय का पहिया कभी न रुकता  तुम क्यों रूकते हो बारंबार  मन की गांठे ढ़ीली कर दो  सख्त पड़ी तो नहीं खुलेगी समझ सके तो समझ ले जल्दी  कभी सफर न रुकता जीवन का  जो वक्त गंवाए मूरख है वह  फिर क्यों खड़े हो मन के द्वारे  मन को क्यूं तुम कोस रहे हो  जबकि खुद से अक्सर दूर रहे हो मजबूर किए हो मन को हरदम  क्यों अहंकार में चूर रहे हो निकल चुके हो दूर बहुत तुम घर द्वार क्यों छोड़ चुके हो  वक्त बचा है अब भी थोड़ा  वापस आजा देर न कर , लक्ष्य क्यूं अपना भूल चुके हो।।

तन्हाइयां मचल उठी हैं

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तन्हाइयां मचल उठी  बहुत सी  बातें  दिल  में  थीं, अब  साफ  हो गई नहीं  रहीं  कुछ भी  कहने  को, हर  बात हो गई तेरे दीदार  को बैठे  थे हम, तुम  तो  रहे मशगूल  तन्हाइयां  मचल  उठी,  और  मेरे  साथ  हो  गई तुम्हारी यादों में ही कट जाएंगे, दिन और ये रातें तुम्हारी खिड़की से झांका  करेंगी, पूनम की रातें  ख्वाब  में  हम  मिला  करेंगे , याद  जब  आएगी फिर से रोशन  हो जाएंगी, यह काली अंधेरी रातें।।

बेगाने बन जाते आप के लिए

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बेगाने बन जाते अक्सर बढ़ जाते हैं फासले, दो दिलों के बीच  जबकि गिले-शिकवे, कभी होते न उनके बीच  भीड़ में कुछ खो जाते, कुछ रह जाते गमगीन   दो दिल मिल नहीं पाते, इस कशमकश के बीच   दिल में रहने वाले, क्यूं दिल तोड़ चले जाते  आंसुओं के सैलाब में, वो डुबाकर चले जाते  पल भर की होती देर नहीं, बदल जाते हालात  फिसल जाती है खुशियां, गमों से चूर हो जाते  फिर जिंदगी के कितने नये अफसाने बन जाते न जाने दर्द में डूबे हुए, कितने तराने बन जाते रहकर दिल के आशियाने में, दिल लूट ले जाना अक्सर अपने ही पल भर में, बेगाने बन जाते।।